Thursday, February 10, 2011

इन्सान पर मेहरबान

ये वक़्त जो इन्सान पर मेहरबान हो जाये तब तो दुनिया हसीं हो जाये
जुर्म की उम्र बहुत कम होने लगे
जख्म का दर्द भी माकूल हो जाये

न रह सके बंदिशे ज़माने की
जमाना खुद शरीफ हो जाये
यूँ तो हर वक़्त शै की गुलाम होती है
जिंदगी देख बड़ी मेहरबान होती है 

दूर तक देख जरा निगाहों से
आसमान जमी की जान होती है
पास से देख जरा आशियाने से 
नजर भी किसी-किसी पर मेहरबान होती है.....

5 comments:

खबरों की दुनियाँ said...

बहुत खूब कहा है आपने , बधाई । आभार खबरों की दुनियाँ में आपके आगमन - मित्रता करने का ।

Irfanuddin said...

काश जुर्म की उम्र कम हो जाती और
जख्म का दर्द भी माकूल हो जाता....
जिंदगी कितनी हसीं हो जाती

Best wishes,
irfan

Anonymous said...

bahut badhiyan

दिलबागसिंह विर्क said...

ये वक़्त जो इन्सान पर मेहरबान हो जाये तब तो दुनिया हसीं हो जाये ---- theek kha aapne.

Kailash Sharma said...

बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति..बहुत सुन्दर..