Thursday, February 10, 2011

इन्सान पर मेहरबान

ये वक़्त जो इन्सान पर मेहरबान हो जाये तब तो दुनिया हसीं हो जाये
जुर्म की उम्र बहुत कम होने लगे
जख्म का दर्द भी माकूल हो जाये

न रह सके बंदिशे ज़माने की
जमाना खुद शरीफ हो जाये
यूँ तो हर वक़्त शै की गुलाम होती है
जिंदगी देख बड़ी मेहरबान होती है 

दूर तक देख जरा निगाहों से
आसमान जमी की जान होती है
पास से देख जरा आशियाने से 
नजर भी किसी-किसी पर मेहरबान होती है.....

जूनून

जूनून जीने का बहुत कुछ सिखा देता है
सूखे पत्तो में भी हवा लगा देता है
कोई पूछे तो जरा उड़ते हुए उनसे
रास्ता न भी हो फिर भी बना देता है
मै कोई खास न लिख सकीं इन शब्दों में
न चाहते हुए भी जीना सिखा देता है ...

मधुकर

जीवन है मधुकर रस का प्याला
है वक़्त नया आने बाला              
आ देखें अब क्या है होने बाला
आने बाले के स्वागत में
बुन लो अब फूलों की माला

जीवन है मधुकर रस का प्याला

जो बीत गया बह जन्म न था
वह तो था वस एक मकड़ी का जाला
जो आयेगा वो पाओगे 
वो ही होगा रस का प्याला..

मत रूठ अभी ये झूठ नहीं
ये नहीं कोई है मधुशाला
जिसमे बहते उन शब्दों को
कह दे कोई रस का प्याला

मै सत्य वचन ये कहती हूँ
कि मिल जायेगा तुझको तेरा "लाला"

जीवन है मधुकर रस का प्याला .....

यह मेरी मामी जी के गर्भ में जब तीन संतानों का अंत हो जाता है. 
और बह व्याकुल थी कंही फिर बैसा न हो जाये लेकिन आज 
जब उन्होंने एक सुंदर शिशु को जन्म दिया